जैन समाज को मिली प्राचीन धरोहर
प्राचीन प्रतिमा विनयपूर्वक विराजमान
ग्राम बिजूर जिला धारा (म.प्र.) से कुछ समय पूर्व श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा मध्य प्रदेश प्रान्त के सहयोग से समाज को प्राप्त हुई भगवान् ऋषभदेव की मनोहारी प्रतिमा दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र मानतुंग गिरी पर १६ मार्च २०२३ को प्रातः कमलासन पर विराजमान की गई।
मध्य प्रदेश के दमोह जिले के पथरिया के पास एक छोटा सा गाँव है किन्द्रह (स्थानीय बुंदेली में बोला जाने वाला किनरी या किनरह) ।
पिताजी (प्रो. फूलचंद जैन प्रेमी जी) माताजी (डॉ. मुन्नी पुष्पा जैन) लगभग ४०-५० वर्ष पहले अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ इस गाँव में आए थे, सो उन्हें अभी विरागोदय तीर्थ, पथरिया की वंदना के समय इसकी याद आ गई। पिताजी को यह भी याद आया कि यहाँ एक प्राचीन जैन मंदिर था और एक तालाब था। तालाब में नहाते वक्त ४० वर्ष पहले उन्हें जैन मूर्तियों के अवशेष (तीर्थकर प्रतिमा का धड़) मिला था। उनकी बड़ी गहरी और आत्मीय जिज्ञासा थी इस गाँव पुनः की। जाने की और उस तालाब को और पुरातत्त्व को देखने
पता चला अब यहाँ वह जैन मंदिर नहीं है। जैन समाज भी अब यहाँ नहीं रहती। इनके रिश्तेदार भी अब यहाँ नहीं रहते। दो-चार घर हैं सो एक छोटा-सा नया मंदिर बना है उसी में दर्शन पूजन करते हैं। वहीं एक बुजुर्ग श्रावक ने बताया पुराने मंदिर की कुछ मूर्तियाँ पथरिया के आदिनाथ जिनालय में स्थापित करवा दी गई थी और कुछ खंडित प्रतिमाएँ नैनागिरीजी के संग्रहालय में रखवा दी गईं। संभवतः इससे भी पूर्व का जिनालय इस स्थान पर स्थापित रहा होगा। किंतु अब यहाँ कुछ भी नहीं है। हम निराश हुए किंतु पिताजी नहीं उन्हें वो तालाब भी देखना था हम तालाब पहुँच गए तो स्थानीय लोगों ने बताया कि कोई पुरातत्त्व यहीं नहीं है। पिताजी नहीं माने अपनी ४०-५० वर्ष पूर्व की स्मृति को वे भूल नहीं पा रहे थे। वे
उन्होंने उनसे कहा कि आप लोग यहाँ आसपास किस मढिया या मंदिर की पूजा करते हैं ? तब लोगों ने आसपास के कुछ छोटे
और स्थानीय विश्वास के कुछ पूजा स्थल दिखाए। यूरेका । पिताजी की युक्तिपूर्ण खोज सफल हुई उन पूजा स्थलों पर जैन मंदिर के पुरातत्त्व के कुछ अवशेष मिल गए जिसकी उन्हें तलाश थी। स्थानीय लोग तालाब के पास गाँव में बने एक चबूतरे पर एक चक्की देवी की उपासना करते हैं, संभवतः तालाब से मिले इन्हीं अवशेषों को वहाँ स्थापित कर रखा है। उन अवशेषों में एक तीर्थंकर युक्त पाषाण फलक भी स्पष्ट दिखाई दिया।
अन्य अनेक कलायुक्त आकृतियाँ भी दिखाई दीं जो स्पष्ट रूप से उस प्राचीन जैन मंदिर के अवशेष लग रहे थे। धन्य है भारत की हिन्दू समाज की आस्था, अज्ञान में भी मात्र आस्था और सनातनी विश्वास की परंपरा के कारण वे पत्थर की प्रत्येक आकृति में ईश्वर का साक्षात्कार कर उनकी पूजा करते हैं और उनका यह विश्वास जाने-अनजाने हमारे पुरातत्त्व का संरक्षण भी कर लेता है।
पिताजी का कहना है कि यदि इस तालाब में खुदाई या खोज की जाय तो संभव है अनेक प्राचीन जैन मूर्तियों मिल सकती हैं।
में पुरातत्त्व का व्यक्ति नहीं हूँ और न ही पिताजी, किंतु बचपन से पुरातत्त्व के प्रति उनकी अभिरुचि, उत्सुकता और उसे देखने का नजरिया सीख रहा हूँ और पुरातत्व की ज्ञानवृद्धि मेरे जीवन का भी लक्ष्य बनता जा रहा है।
प्रो. अनेकांत कुमार जैन, आचार्य जैनदर्शन विभाग, श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली

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