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Middle Class Love, part 2

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Middle class love

Middle Class Love part 2.

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Middle Class Love, part 1


श्रुति की आंख खुलते देर न लगी, शाम नजदीक थी या  लगभग शाम हो ही गई थी, आंख खुलते ही बीती पूरी घटना आंखों के सामने दुबारा घूम गई, ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ आंखों के सामने फिर से होकर बीत गया।

टेबल का सहारा लेकर श्रुति खड़ी हो गई और सबसे पहले हाथों को ऊपर की तरफ़ खींचते हुए उंगलियों को तड़तड़ाया फिर जाकर गेट खोला।

श्रुति ने जब सामने देखा तो जनाब मुंह को गुलदस्ते से ढके, बगल में एक पर्चा भी लिखा हुआ लटक रहा था, जिसको बारीकी से देखने पर dear.... बस दिखा और ज्यादा कुछ नहीं, श्रुति को समझते देर न लगी इसलिए इस पल को भी और यादगार बनाने के लिए श्रुति ने बगल में रखा पानी से भरा मग सिर पर झट से खाली कर दिया, जैसे ही श्रुति ने पानी से भरा मग खाली किया, गुलदस्ते के पीछे छिपा चेहरा भी सामने आ गया।

क्या यार पूरा गीला कर दिया, मयंक ने श्रुति की चुन्नी पकड़ माथे के छीटे पोंछते हुए कहा।

मेरी चुन्नी भी तो गीली हो गई इसका कुछ नहीं, श्रुति ने झट से दुपट्टा खींचते हुए बडी मासूमियत से कहा, जवाब समझ के बाहर था, पर मयंक को इससे अच्छा कोई जवाब मिल ही नहीं सकता था।

वैसे तू पर्ची कब से लिखने लगा है, श्रुति ने खत को पढ़ते हुए मयंक की तरफ देखा।

इसे पर्ची नहीं कहते, इसे प्रेम पत्र कहते है, सही बताए तो हमारी भाषा में दिल वाली चिट्ठी । मयंक ने कॉलर उठाते हुए एक नई जानकारी श्रुति तक पहुंचाने की कोशिश की।

लेकिन सर इसे मेरी भाषा में लेटर कहते हैं, श्रूति ने आंखों से आंखे मिलाते हुए कहा जिसपर दोनों की हंसी छूट गई।

दोनों लंबे समय तक हंसते रहे, और कुछ ही देरी में पर्ची बंद हो चुकी थी और गेट भी । 

श्रूति का टुपट्टा गेट के पास ही लटका रहा और श्रूति के हाथ मयंक के कंधे के पीछे। 

मैं आज बहुत डर गई थी, बस इतने ही शब्द श्रूति के गले से निकले लेकिन ये कहने के पहले मयंक के कंधे पर कई सारी आंसू की बूंदे लुढ़क चुकी थी। 

देखो मैं बता रहा हूं, पहले ही काफी गीला कर चुकी हो अब और नहीं, मयंक ये शब्द तो कठोरता से निकले पर आखों से दो बूंदे यहां भी टपकी।

सॉरी, श्रूति ने कंधे के पीछे दोनों हाथों को थोड़ा और जकड़ते हुए कहा।

कुछ देर तक दोनो निशब्द खड़े रहे बस घडी की टिक टिक ही सुनाई पड़ रही थी, ऐसा लग रहा था, जैसे शांत सुनसान खंडहर।

आखिरकार मयंक ने चुप्पी तोडी, वैसे शर्मा जी नही दिख रहे हैं।

पापा किसी को हॉस्पिटल लेकर गए हैं, आते ही होंगे। श्रुति  कंधे का सहारा लिए हुए धीरे से बुदबुदायी।

सच में अंकल बहुत दयालु हृदय के हैं न?

मेरे पापा है वो, होना ही चाहिए, वैसे थैंक यू तारीक करने के लिए। इस बार भी धीरे से ही बुदबुदाया।

वैसे शाम के 7 बज रहे हैं अब मुझे चलना चाहिए, मयंक ने घड़ी की तरफ़ देखते हुए श्रुति की काली लटों को हाथों से बडी मासूमियत से सहेजते हुए कहा।

ठीक है, पर ख्याल रखना श्रुति ने गले से हांथ हटा मयंक को रिहाई तो दे दी पर खुद दोषी की तरह आंखे अब भी नीचे ही झुकाये हुऐ खड़ी है। मयंक ने आज पहली दफा श्रूति को इतना उदास और दुखी देखा था, नही तो आज के पहले कभी आज जैसा दिन नही आया था।

मयंक ने श्रूति के गाल अपने दोनों हाथों ने लगभग समेटते हुए माथा धीरे से गीला किया, और घर से निकल गया। श्रूति घर की चौखट पर खडी मयंक को आखिरी मोड़ तक जाते हुए देखती रही।

अगली सुबह श्रुति अपने काम पर निकल गई, आज उसके साथ क्या होने वाला है, उसे इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था, श्रूति ऑफिस समय पर पहुंची और अपने काम में लग गई, समय गुजरते देर न लगी करीब 1 बजने को था,  ऑफिस के लोगों के कानो कानो कुछ खुशर फुशर भी चलनी शुरु हो गई , कुछ उठकर कैंटीन की तरफ़ निकल गए तो कुछ मैनेज के ऑफिस के पास खड़े थे, और कुछ गेट पर बैचमैन ताऊ से बतया रहे थे, श्रुति की बेस्ट फ्रेंड कनिष्का भी अपनी कुर्सी छोड़ सभी के साथ मिल गई, श्रुति को इसका आभास तो हो गया था कुछ तो गुटर गू चल रहा है, पर क्या चल रहा है उसे पता भी नही चलने पाया, उसने एक दो बार देखने को कोशिश भी की लेकिन नजरंदाज कर दिया, अब समय करीब 1:30 के नजदीक था कि तभी सभी ने ऑफिस के एक एक कोने से उभरकर श्रुति को घेर लिया।

श्रुति कल तुमने बहुत ही बहादुरी का काम किया है, अगर तुम कोशिश नही करती तो हो सकता था, कई लोग अपनी जान गंवा देते, ये शब्द मैनेजर साहब के थे जो श्रुति के जस्ट सामने खड़े हैं।

श्रुति ने धीमे से मुस्कुराया, कि तभी सभी ने तालियों की गूंज से ऑफिस गुंजायमान कर दिया, श्रुति को समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहें क्या नही।

Thanks to all, लेकिन ये सब जो मैंने किया है, जाने अंजाने में किया है, वैसे डर तो मुझे भी बहुत लग रहा था, श्रुति ने मजाकिया अंदाजे में कहा।

जिस पर सभी की हंसी छूट गई, श्रुति को भी आज का दिन अपनी उम्र का सबसे बेहतरीन दिन लग रहा था। उसके काम करने का अंदाज सभी को भाया, श्रुति के नाम के चर्चे आज अखबार के मुख्य पृष्ठ पर भी देखने को मिल गए थे, पर श्रुति का दिल अभी भी इस सब से परे किसी के खयालों में खोया हुआ था, जिसे समझ पाना सबके बसकी काम नहीं था, इसे यहां श्रुति को समझना था वो वहां मयंक को....

श्रुति खिलखिलाती मस्त पवन के झोंको से खेलते हुई घर की तरफ निकली ही थी तभी कनिष्का ने पीछे से आवाज दी...............

Wait for next part.......


✍🏻❣️

अभिषेक कुमार जैन

      "देवराहा"


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