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Middle class love |
middle class vala love:
कितनी बार कहा है, मुझे पर्सनल नंबर से मैसेज मत किया करो, मैं पापा के पास बैठी रहती हूं यार, समझा करो। श्रुति ने जल्द बाजी में मेसेज फैंका।Sorry मुझे क्या पता था..
It's okkkk अभी बात करते हैं, श्रुति ने लिखा।
Myl... मयंक ने प्रत्युत्तर में सामने से इतना ही लिखा।
Love you....
मयंक को श्रुति की यही बात पसन्द थी, वो जैसी थी साफ थी, जो कहती थी साफ ही कहा कहती थी, कभी झूठ का सहारा नहीं और कभी वेबजह बकवास भी नहीं।
मयंक ने इस साल अब फिर एक नई कंपनी ज्वॉइन की है, जिसका मकसद सिर्फ इतना है कि ये कंपनी श्रुति के घर के जस्ट सामने ही थी, जिससे मयंक को श्रुति से मिलने का मौका नहीं ढूंढना पड़ता था, बल्कि मौका मयंक को ढूंढते मिल जाता था।
श्रुति स्वभाव से बेबाक है, बिल्कुल नए जमाने की लडकी पहनावा मिडिल क्लास वाला जिसमें संस्कार की गंध थी, और स्वाभिमान का तेज, और पिता जिसके जीवन का प्रथम सौपन है, जिसके आगे न कोई दुनिया है और न ही इसके पीछे । पर अब मयंक के मिल जाने से श्रुति को वर्षों से जिस प्रेम की जरूरत थी वो भी शायद पूरा हो गया था, पर पिता को इसके बारे में पता नहीं था, और न ही श्रुति अभी बताकर पापा के विश्वास को कम करना चाहती थी, उसे ये भी यकीन है एक दिन ऐसा भी आयेगा जब पापा को सब कुछ बता देंगे।
श्रुति के पापा बालकनी में बैठे चाय की अंतिम सिप ले ही पाए थे कि तभी उनकी नजर सामने बनी बिल्डिंग पर गई, वे एक नजर तो देखकर भौचक्के ही रह गए उनके हलक में अंतिम चाय का घूंट ऐसे रुका जैसा लाइट जाने पर मोटर का पानी वहीं अटक जाता है न ही उगलने की कंडीशन थी और न ही गटक ने की ताकत, उनने श्रुति को आवाज दी बेटा श्रुति बाहर आना...
पापा की घबड़ाई सी आवाज सुन श्रुति भी भागती हुई बालकनी में आ खड़ी हुई।
सामने देख श्रुति भी सन्न रह गई, उसे देखकर यकीन ही नहीं हो रहा था, जिस कंपनी में मयंक काम करता है, उसे आग की लपटे घैरे हुए है, कुछ लोग कांच को तोड़कर चौथी
मंजिल से मदद की उम्मीद में खडे हैं, कुछ तो आग की लपटें न सह सके तो छलांग लगा दी जिसने जमीन पर आने के पहले ही प्राण त्याग दिए, श्रुति चश्मा को सम्हलती हुई कंपनी की तरफ भागी, पिता भी साथ में भागे पिता को जनता का दुख दिख रहा था और श्रुति को मयंक का बार बार बुरा ख्याल सताए जा रहा था, श्रुति सीधी कंपनी के बाहर जाकर रुकी।
बाहर बहुत भीड़ थी, लोग ये नजारा देखकर डरे सहमे बस दुआएं मांग रहे थे, पर श्रुति कुछ और सोच रही थी, श्रुति ने तुरंत मामले की जानकारी लेनी चाही।
क्या हुआ अंकल कोई मदद के लिए नही आया अभी तक?
सूचना अभी दी है, अधेड़ ने इतना ही कहा।
ये आग कैसे लगी चाचा, अन्दर कितने लोग होंगे? श्रुति ने छोटे बच्चे की तरह प्रश्न पर प्रश्न दागने शुरू कर दिए।
ये तो पता नहीं, पर 300 के आस पास पब्लिक होगी, अब तो भगवान ही मालिक है। चाचा ने सिर पकड़ते हुए कहा और बार बार ईश्वर से रक्षा की मांग की।
पुलिस को सूचना मिल चुकी थी पर अभी पहुंचने में देरी थी, श्रुति को ये नजारा भयंकर तो लग ही रहा था, साथ ही बहुत बैचेन भी कर रहा था, श्रुति ने भीड़ में आगे जाकर मैन गेट की तरफ देखा, वहां आग बहुत कम थी, लेकिन अभी तक एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड को सूचना देरी से मिलने के कारण कोई भी अन्दर जाकर हालत नही देख रहा था, श्रुति ने पिता की अवस्था को समझ उन्हें वहीं छोड़ा और सीधी निडर ऐसे गेट के अंदर भागी जैसे मूवीज शुरू होने पर व्यक्ति सिनेमा हॉल की सीढियां छोड़ता हुआ भागता है।
अन्दर जाकर देखा तो चौकीदार बेहोश कुर्सी के नजदीक ही पड़ा था, श्रुति को इसे छोड़कर अन्दर जाने का मन नहीं किया, श्रुति कंधे का सहारा देकर वॉचमैन अंकल को बाहर तक ले आई जिसे देख लोगों को अन्दर से ऐसा उत्साह फूटा कि वे भी श्रुति का सहयोग कराने में लग गए, श्रुति को ऐसी ताकत का अनुभव हो रहा था, जैसी उसे अभी तक कभी न हुई, उसने दुगने उत्साह से लोगों को बाहर तक लाने में मदद की और मयंक को हर बार नंगी आंखों से चप्पे चप्पे पर तलाशने की कोशिश की लेकिन मयंक तो नही मिलता पर बार–बार किसी असहाय की सहायता उसे गेट तक खींच लाती।
करीब 15 मिनट्स बाद एम्बुलेंस आई, श्रुति को मयंक की कुछ जानकारी न मिलने के कारण बहुत नाराजगी थी, और बहुत डर भी लग रहा था, पर उसने लोगों का सहयोग करना जारी रखा।
तभी श्रुति के मोबाईल पर एक हल्का का मैसेज दिखा, भेजने वाले का नाम नही था, पर मैसेज किसका है, श्रुति को समझते देर न लगी,
श्रुति ने सीधे पहला प्रश्न यही किया।
कहां हो तुम...??
आपके दिल में, मयंक ने रोमांटिक माहौल बनाने की सोची।
सीरियसली पूछ रही हूं, कहां हो बे? मेरा दिल पहले से फटा जा रहा है। श्रुति ने नाराजगी और एक अदृश्य डर के साथ लिखा, जो उसे परेशान भी कर रहा है और अन्दर से भयभीत।
घर पर ही हूं यार क्या हुआ?
Thanks God, you are safe. पता है तुझे तेरी कम्पनी में आग लग गई है, मैं अभी नीचे खड़ी हूं। कंडीशन बहुत ही खराब थी, अब काफी हद तक सही है। श्रुति ने मोबाइल की स्क्रीन को दो बार गीला करके पोंछ डाला ये तीसरी बार था, उसने फिर चुन्नी से मोबाइल रगड़ा।
O my God really? आज मैं सही नही कम्पनी आया।
मयंक ने भगवान को शुक्रिया अदा करते हुए लिखा।
ये जानकारी मिलते ही श्रुति की जान में जान आई उसे यकीन नही हो रहा था, मयंक बिलकुल ठीक है, वह तुरंत भागकर पापा के पास पहुंची पर पापा एंबुलेंस की गाडी में किसी परिचित को लेकर हॉस्पिटल की ओर रवाना हो चुके थे, श्रुति अलेके ही घर आ गई, पापा के आने का इन्तजार था और अंदर से बहुत खुश थी आज मयंक सही नही कम्पनी आया नही तो क्या होता?
श्रुति की टेबल का सहारा लेकर पता नहीं कब आंख लग गई पता ही नही चला, कुछ ही देर में देखा तो मोबाईल पर एक "भीड़ में निकला योद्धा" वाला पोस्टर देखा जिसको मयंक ने अभी अभी भेजा था।
श्रुति देखकर अब की दफा फिर भौचक्की रह गई, इसमें श्रुति असहाय को कंधे देकर कैसे मदद कर रही है, पोस्टर देखकर कोई भी आसानी से बता सकता था,
मयंक भी श्रुति की बहादुरी से बहुत खुश है, उसे आज अपनी श्रुति पर बहुत प्यार आ रहा है, लेकिन समय और दूरी दोनों बीच में है।
तभी श्रुति ने दरवाजे पर किसी की आवाज सुनी।
👇👇👇 To continue....
✍🏻❣️
अभिषेक कुमार जैन
"देवराहा"
1 टिप्पणियाँ
Bahut khoob
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