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| Middle Class Love |
Middle Class Love part 3
अरे क्या सोच रही है, कनिष्का ने पीछे से आवाज लगाई।
कुछ नहीं बस ऐसे ही, श्रुति ने अपनी चुन्नी ठीक करते हुए कहा।
कुछ तो है जो छुपाए भी नही बन रहा है न बताए बन रहा है, कहीं... कनिष्का का इशारा कहीं को लंबा खींचते हुए ही समझ लिया गया।
वैसी कोई बात नही है, आज यूं ही किसी की याद आ गई,
वैसे तू किधर रहती है आज कल मिलती ही नही श्रुति ने टॉपिक को पूर्व से पश्चिम की तरफ मोड़ने की पूरी कोशिश की।
मैं सब बताऊंगी पहले तू मेरे सवाल पर खडी रह, भागने की कोशिश नही, कनिष्का ने एक बात कही पर उसके दो मतलब थे पहला मतलब था कुछ छुपाने की जरूरत नहीं है जो है सब बता मुझे और दूसरा कनिष्का ने श्रुति से कदमों से कदम मिलाकर चलने की अपील की वो इसलिए क्योंकि श्रुति कनिष्का से कुछ कदम आगे ही चल रही थी।
पता नहीं तू कैसे समझ लेती है, कि मेरे दिमाक़ में क्या चल रहा है और क्या नहीं तू ज्योतिषी क्यों नहीं बन जाती, बनाते रहना प्रेमियों की जोड़ियां, श्रुति का इतना कहना था कि कनिष्का को समझते अब देर ना लगी, तुरंत अगले शब्द यही निकले।
तो यहां प्रेम प्रसंग है, तभी सोचूं मिस क्यों उखड़ी उखड़ी लग रही है, मैंने तो सुना है प्रेम का बुखार अच्छा होता है, तुम्हें तो उदास कर रहा है, कहीं... कनिष्का का कहीं इस बार फिर श्रुति ने दबाने की कोशिश की।
अरे वो बात नहीं है, वैसे तू सब जानती है, मैं घर में पापा के लिए सब कुछ हूं अगर उन्हें मेरे और मयंक के बारें में पता चला तो...क्या कहेंगे.. क्या होगा... एक्सेप्ट करेंगे या.. बस इन्हीं बातों में खोई हुई थी, पर तू बड़ी समझदार है झट से कैसे समझ लेती है, श्रुति ने कनिष्का के गालों से खेलती लटो को अपने हाथों से कानों के पीछे धकेल दिया।
इश्क कामयाब नही होता ये कौन कहता है मुर्शद।
इश्क भी हद से गुजर जाने की उम्मीद रखता है।
कनिष्का ने श्रुति के कान में धीरे से बुदबुदाया।
वा मैडम तुम तो शायरी करने लगी हो, क्या बात है? श्रुति चहककर बोली।
जिसपर कनिष्का ने बस मुस्कुरा दिया।
दोनों के बीच कुछ देर तक बात चीत हुई और फिर श्रुति घर की तरफ निकल गई, शर्मा जी श्रुति के ही इंतजार में थे। उनको श्रुति के घर लोट आने पर इतनी खुशी होती थी जितनी बच्चे को खिलौना मिलने पर।
आ गई बेटा, शर्मा जी ने अख़बार मोड़ा।
हां पर पापा को आज समय पर खाना खा लेना चाहिए था, आपने कहा नहीं उनसे , श्रुति ने शर्मा जी से इस अंदाज में कहा जैसे पापा कोई और है और शर्मा जी कोई और।
बोला था बेटा पर उनने कहा, श्रुति को आ जाने दो साथ में खा लेंगे। शर्मा जी ने भी बखूबी इस सिलसिले को जारी रखा, अक्सर घरों में ऐसा ही होता है, जब बतियाने के लिए दो लोग ही होते हैं, तो बातें इसी जरिए से हुआ करती है, ये परिवार के प्रेम को और अधिक बढ़ाता है।
श्रुति खाना लगाकर टेबल पर तैयार है।
जल्दी करो पापा खाना ठंडा हो रहा है, और शर्मा जी से भी बोल देना गीले पैर कमरे में न आयें।
आ रहा हूं, इतना कहते हुए शर्मा जी कमरे में इंटर कर गए।
शर्मा जी कुर्सी पर बैठ चुके थे, अक्सर परिवार में मां बेटियां अपनी बात खाना की प्लेट के सामने ही रखने में माहिर होती हैं, पता नही इससे पीछे क्या इतिहास है पर हां इतना जरूर है, परिवार की मां बहनों के शब्द यहां निकल बड़ी आसानी से जाते है और बात भी मानी जाती है।
श्रुति ने अच्छे से सोच विचार कर लिया था, की आज पापा को मयंक के बारे में सब कुछ बता दूंगी।
श्रुति में अपनी बात शुरु की ही थी कि आज फिर किसी ने दरवाजे पर लगी वैल दबाई।
कौन हो सकता है ? शर्मा जी ने श्रुति से ऐसे पूछा जैसे श्रुति को ही बताकर सब घर में आते हैं।
पता नही मैं देखती हूं पापा, श्रुति गेट पर पहुंची, गेट खोला तो आज फिर श्रुति भौचक्की रह गई उसे फिर विश्वास नही हो रहा था, जिसके बारे में वो आज सब कुछ कहने वाली थी, वो मेरे सामने है।
अरे मयंक तुम श्रुति ने आश्चर्य से कहा।
Yes कोई और लग रहा हूं क्या? मयंक ने अपनी एक आंख धीरे से दबाई, और गेट पर अपना दांया कंधा टिका लिया।
प्रति उत्तर में श्रुति ने भी अपनी एक आंख धीरे से दबा दी।
मयंक गेट से निकलकर सीधे शर्मा जी के जस्ट सामने जाकर रुका श्रुति गेट का सहारा लिए हुए सब देख रही थी।
मयंक ने पहला प्रश्न सीधा यही रखा, शर्मा जी आपसे कुछ बात करनी है, मयंक का ये कहना था कि श्रुति का दिल दुगनी स्पीड से धड़कने लगा।
बताओ बेटा शर्मा ने गर्दन उपर उठाते हुए मयंक की तरफ देखा।
मयंक के पास साहस तो बहुत था पर शब्द साथ नही दे रहे थे, इसलिए मयंक ने शर्मा जी से कुछ नजरे चुराते हुए कहा।
सर मैं श्रुति से सादी करना चाहता हूं, आपकी परमीशन के बिना न श्रुति हां कह सकती है और न ही मैं सादी, और श्रुति भी यही चाहती है।
शर्मा जी ने पहले श्रुति की तरफ देखा, श्रुति ने एक भी शब्द नहीं कहा पर उसकी आंखो मे देखने पर उत्तर हां में ही था, शर्मा जी ने मयंक जी तरफ देखा और सिर पर हाथ रख दिया।
श्रुति को विश्वास ही नहीं हो रहा था, जिसके बारे में मैं पापा से बात करना चाहती थी, वो मयंक ने कैसे करली, पर श्रुति नही जानती थी, प्रेम में वो ताकत है जिसे हम देख नहीं पाते बस अनुभव कर सकते हैं।
ऐसे कई सारे प्रेमी होते हैं जो परिवार से बात न करके गलत कदम उठा लेते हैं जिसका उन्हें फिर जिंदगी भर मलाल रहता है।
खैर श्रुति ने दोनों तरफ सोचा, आज श्रुति का बोझ भी हल्का हो गया और मयंक के अधूरे प्रेम का।
मयंक भी शर्मा जी की हामी से बहुत खुश था, तभी मयंक ने श्रुति की तरफ देखते हुए आशिकाने अंदाज में कहा।
इश्क कामयाब नही होता ये कौन कहता है मुर्शद।
इश्क भी हद से गुजर जाने की उम्मीद रखता है।
मयंक ने इतना कहा ही था, श्रुति को समझते देर न लगी ये तो कुछ देर पहले कनिष्का में मुझे शायरी सुनाई थी।
अच्छा तो बेटा तुम कनिष्का को कैसे जानते हो, श्रुति ने फूट्स की टोकरी में रखी चाकू मयंक के ऊपर खींच दी।
मयंक जोर से हंस पड़ा।
श्रुति को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था।
मैंने कुछ पूछा था तुमने? श्रुति ने याद दिलाते हुए कहा।
मयंक ने अपनी हंसी पर काबू पाते हुए धीरे धीरे शब्द छोड़े,
कनिष्का कोई और नहीं बल्कि मेरी बहिन ही है।
ये सुनकर श्रुति भी जोर से हंस पड़ी।
शर्मा जी भी दोनों की खुशी में सामिल हो गए।
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अभिषेक कुमार जैन
"देवराहा"

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