"प्रवासी मजदूरों का मसीहा" Sonu Sood |
फिल्मों में निगेटिव किरदार निभाने वाले बॉलीवुड (Bollywood) अभिनेता सोनू सूद (sonu sood) रियल लाइफ में किसी सुपरहीरो से कम नहीं हैं। लॉकडाउन (lockdown) के दौरान सोनू सूद प्रवासी मजदूरों के लिए एक मसीहा के रूप में सामने आए थे जिन्होंने प्रवासी मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाया था। यही वजह है कि अब सोशल मीडिया पर लोग प्रशासन से पहले सोनू सूद से मदद की गुहार लगाते हुए नजर आ रहे हैं।
आखिर क्यों लोग प्रशासन से पहले सोनू सूद से मदद की गुहार लगाते हैं इसे देखते हैं......
शोरगुल से शून्य पूरी कक्षा अपने-अपने काम में लगी हुई है, बस हवा के झोंके ही बार बार आकर खिड़की को छेड़ रहे थे,
जिसके प्रतिकार स्वरुप खिड़की बार-बार नंगी दीवार में टकराकर पट्ट की आवाज के साथ खामोश हो जाती थी।
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गुप्ता जी कुर्सी पर लटके लटके अपनी नाक सहला रहे थे।
तो कुछ बच्चे अपनी टेबल पर गुप्ता जी का चित्र उकेर रहे थे। पर सभी शांत थे, कहीं से भी चूं की आवाज तक नहीं आ रही थी ।
कक्षा के अंत में गुप्ता जी attendece लेने लगे, ताकि लेट आए विद्यार्थियों का भी उद्धार हो सके।
रोहित जैन,
Present sir .....
रवि मिश्रा ,
Yes sir.....
कालुआ यादव,
उपस्थित गुरु जी.....
पीतल प्यारे लाल,
उपस्थिति अहम् अस्मि
कुल मिलाकर सभी अलग-अलग हाजरी दर्ज कराय रहे थे, जिन्हें देख-देख गुप्ता जी कभी तो हंस देते , तो कभी-कभी आंखो की त्रिज्या चौड़ाते हुए ऐसे घूरते जैसे उसने गुप्ता जी की टांग ही खींच दी हो ।
पर कुछ भी हो जाए, गुप्ता जी पूरी कक्षा में एक बच्चे पर खूबइ प्रसन्न रहते थे। जिसकी ईमानदारी और लगन पर गुप्ता जी कब से फिरा हो चुके थे।
कैंटीन पर चार- पांच जिगरी यार आपस में बैठे -बैठे बतया रहे थे।
यार पीतम प्यारे लाल तेरा नाम किसने रखा, रोहित ने चाय की लंबी सिप मारते हुए कहा।
पीतम को प्यारे, पीतम प्यारे ...
पता नहीं शायद बुआ का दिमाग फिर गया था। जो अटपटा नाम रख दिये, पीतम प्यारे लाल ने बात को टालना चाहा ताकि खिंचाई ना हो कय की अक्सर प्यारे लाल की इसी बात पर खींचाई होती थी। और कभी-कभी तो हाथापाई की नौबत भी आयी।
और कलुवा तुम्हारा.........रवि ने कुटिल हंसी हंसते हुए पूछा।
हमारा खानदानी नाम है भाईसाहब, वो ...कालीचरण हमारे दादा जी का नाम था। बस उसी से मैच करता हुआ हमरा नाम रख दिया कलुआ, कलुआ ने बड़ी सिद्धत से सच्चाई बयान कर दी और बिना किसी हिचकिचाहट के कयकी उसे अपने नाम पर गर्व था।
क....लु..आ....रवि ने १-१अक्षय चबाते हुए कहा। जिस पर पूरी मित्र मंडली ठठाकर हंस पड़ी, जिसकी गूंज कलुआ के सीधे दिल में उतर गई।
और सोनू सूद श्रीवास्तव तुम्हारा क्या ख्याल है ?
पीतम प्यारे लाल ने ताली पीटते हुए, मंद मंद मुस्कुरा दिया जिसके पीछे छिपी सच्चाई सोनू को भांपते देर ना लगी।
क्या बताऊं दोस्त,
मेरे नाम के पीछे एक कहानी है, जो दर्द और खामोशी से लावालव भरी आज भी हृदय को झंकृत का देती है, सोनू सूद ने चाय के ग्लास में नजर गढ़ाए हुए बड़ी गंभीरता से कहा।
कहानी ...कैसी कहानी ? पीतम प्यारे लाल ने मुंह गुडयाते हुए कहा।
बात करीब 10 साल पुरानी है, वर्ष 2020 की।
दुनिया को गम से भर देने वाला ... शैतानों का अड्डा..... दुखी और दरिद्रो का भक्षक इतना कहते -कहते सोनू सूद की जवान लड़खड़ा उठी।
अबे, कोरोना आया था 2020 में तो , कहीं उसी की बात तो नहीं कर रहा है, रवि ने सोनू सूद के चेहरे पर नजर गढाये हुए, भावों को पढ़ना चाहा ।
Right....सोनू ने धीरे से कहते हुए सिर हिला दिया।
और दोस्त क्या हाल चाल है,सोनू का चहेता गम बांटने दस्तक दे चुका था।
वो..सोनू की कहानी जान रहे थे, कलुआ ने देशी अंदाज में कहा।
कौन सी कहानी भाई हम भी तो जाने, सोनू के जिगरी यार ने कलुआ की पीठ बजाते हुए कहा।
कोरोना.. भाई 2020 में आया था, बस इसके नाम के पीछे की सच्चाई जान रहे थे कि इतने में तुम आ गए।
मत पूछ यार, दिलीप ने लम्बी सांस छोड़ते हुए कहा..और खुद शुरू हो गया उस वक्त की कहने जिसने मानव को खून के आंसू रुलाए थे।
यदि दूसरा खून के आंसू रोता तो शायद भुलाया भी जा सकता था, पर जो खुद उस तकलीफ से गुजरा हो, तो उसे भुला पाना आसान नहीं होता।
(10 साल पहले सन् 2020)
मम्मी, मैं खेलने जा रहा हूं, मेरे दोस्त आ गए होंगे, मैने आगन से आवाज़ लगाई।
मैंने सोचा, मम्मी खिड़की से झांक कर रोज की तरह आज भी यही कहेगी, ठीक है बेटा, अच्छी तरह से जाना ....पर उम्मीदों पर पानी फिरते देर ना लगी।
कहीं नहीं जाओगे, घर पर ही खेलना है। बाहर कैसी बीमारी आय पड़ी है, और तुम्हें खेलना दिख रहा है, मम्मी ने किचन से आवाज लगाई, जो जोश को पस्त गई।
मैंने फिर एक शब्द भी नहीं कहा और कहने के लिए कुछ था भी नहीं, धीरे धीरे मैंने उस किराए के कमरे में ही अपनी दुनिया बना ली थी, बाहर जाना अब एक तरह से बंद हो गया।
एक दिन -
मैडम जी, ओ मैडम जी, मकान मालिक ने कमरा किराया मांगा है, एक लंबी दाढ़ी वाले किसी आदमी ने जोर की आवाज के साथ दरवाजे पर दस्तक दी।
मैं वहीं बैठा - बैठा सब कुछ देख रहा था, थोड़ी ही देर में मम्मी आ गई, जी भाई साहब! क्या काम है, मम्मी ने नम्रता का परिचय देते हुए कहा।
काम आम तो कुछ नहीं है, कमरा किराया दे दो और कुछ नहीं, उस आदमी ने बड़े ही कठोर शब्दों में कहा।
भाई साहब वो ....मम्मी ने एक शब्द ही कह पाया था, कि बीच में ही टोकते हुए।
मकान मालिक ने कहा है बहन जी, हमारे पेट पर काहे लात मारने पर तुली हो। इन शब्दों ने मम्मी को अंदर से तोड़ दिया वो लंबी दाढ़ी वाला तो चला गया, पर मम्मी कमरे में जाकर किसी भी प्रकार की आवाज किये बिना गर्म-गर्म आसुं बहाने लगी, जिसे मैंने खुद अपनी आंखों से देखा था।
तब मैं इतना छोटा था ना तो मम्मी के आंसू पोंछ कर उन्हें सांत्वना दे सकता था, ना ही मकान मालिक के मुंह पर पैसे मारकर कह सकता था, कि ये है तुम्हारा किराया आइंदा शराफत से पेश आइयेगा।
मैं बेजुबान गुड़िया के साथ खेल रहा और उसी के साथ खेलता रहा।
पापा लॉकडाउन के कुछ दिन पहले ही घर पर गए थे। शायद उन्हें कोई जरुरी काम था, उन्हें कहां पता था, कि लॉकडाउन लगने वाला है।
जैसे ही लॉकडाउन लगा, मम्मी बहुत बेचैन हो गई, एक मात्र पापा थे, जो घर की बाग डोर हांथो में थामे हुए थे, जो कुछ लाते थे बहुत था।
मम्मी ने सोचा, जो है तो है 21 दिनों के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा। जब तक जो हाथ में है, उसी से खर्चा पानी चल जाएगा।
पर इस बार भी उम्मीदों पर पानी फिर गया लॉकडाउन पर लॉकडाउन लग गया, एक तरफ मकान मालिक किराए के लिए जान पर रुठे हुए थे, तो दूसरी तरफ ये पापी पेट जो कुछ हाथ में था, उसे भी लूटाने पर बैठा था।
पर जैसा भी था, गुजारा चल रहा है, बस चिड़ियों की चर्चराहत ही कानों तक आती थी, मानवों का शोरगुल तो मानो गुम ही हो गया था।
एक दिन फिर किराया मांगने के लिए कोई आया हुआ था, उसके आते ही पूरे किराएदार हॉल में चले गए। मैं भी अपनी मम्मी की गोद में लटका हुआ, वहीं पहुंच गया।
मकान मालिक ने बड़े ही तीखे शब्दों से मीटिंग शुरु कर दी।
कमरा अपने बाप का समझ लिया है क्या ? मन किया तो किराया दे दिया, नहीं किया तो भाड़ में जाने दो, बोलो........
मकान मालिक ने चिल्लाते हुए कहा।
ये मकान मालिक की जोश को पस्त कर देने वाली आवाज पूरे हॉल में गूंज गई।
मेरी आंखें उसी को ही देखे जा रही थी, बस देखे ही जा रहे थी।
किराया नहीं है, तो रहने की जुररत नहीं है, मकान मालिक आखिरी निर्णय सुनाकर चला गया और छोड़ गया हम सभी को अपने हालात पर जियो या मरो हमें कुछ भी फर्क नहीं पड़ता ।
मम्मी उदास चेहरा लिए हुए वापस अपने कमरे पर आ गई, मैंने पहली बार उनको इतनी उदासी की चपेट में देखा था। ये नजारा देखकर मेरा भी दिल खूब रोने को करता, मगर नादान था, कहां दूसरों की पीड़ा दिल को चोट मारती।
एक दिन मम्मी अपना सामान - आमान लगाकर चार दीवारों और एक छत को छोड़ने के लिए तैयार हो गई, साथ में कई सारे अन्य लोग भी तैयार हो गए, जिन्हें नौकरी के अभाव में दर दर की ठोकरे खाने के अलावा उस शहर में कुछ भी नहीं मिल रहा था।
यात्रा पैदल ही करनी थी, गुट के गुट बनाकर जनता वहां से रवाना होने लगी। ना धूप चुभती थी, और ना ही थकावट तकलीफ दे रही थी, एक जोश लिए सभी चले जा रहे थे, जिनको खुद विश्वास नहीं था, कि वह घर पहुंचेंगे भी या नहीं। पर सभी के मुंह से ये जरूर सुननें मिल जाता था...
यहां भूखे मरे, इससे अच्छा तो चलकर ही रास्ते में मर जाए, वो अच्छा है और ऊपर वाले का शुक्र रहा, तो घर भी नसीब हो जाएगा।
मम्मी कमरे को ताला लगाकर नहीं, बल्कि खाली करके जा रहीं थी। बहुत सारा सामान तो वहीं छूट गया, कुछ खास सामान ही ले लिया, वरना कौन भला इतना ज्यादा सामान लादकर चलता, एक बड़े से सूटकेस पर मुझे बिठा दिया, जिसे धड़काकर मम्मी पैदल ही आगे बढ़ी जा रहीं थीं।
तभी राहत की 1 घंटी बजी कि सरकार की तरफ से मजदूरों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए ट्रेन चलाई जाएगी, सभी ऑनलाइन अपना रजिस्ट्रेशन करवा लें।
मम्मी आशा की किरण लेकर रेलवे स्टेशन तक पहुंच गई, रजिस्ट्रेशन हमारे मुंह बोले चाचा ने कर दिया था। शायद मेरी मासूम शक्ल देखकर रजिस्ट्रेशन दिया था।
कोई किसी से भी संपर्क नहीं रखना चाहता था। ना ही कोई खाने की पूछ रहा था, ना ही पीने की। भूखे प्यासे हम यहां के वाह भटकते रहे।
रजिस्ट्रेशन की डेट भी आ गई थी। लेकिन झूठी तसल्ली के अलावा कुछ हाथ ना लगा, सरकार भी लस्ट हो चली थी, कल- कल कहते हुए तीन दिन बीत चुके थे, पर किसी ने भी सहारा नहीं दिया। मानो उस वक्त सरकार भी हमें देखकर हंस रही थी, इस मुश्किल की घड़ी में हमें सहारा देने वाला दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा था। जिसे देखो वह खुद सहारे की बाट लगाए निहार रहा था।
इंटरनेट पर फिलहाल में बस एक ही शख्स छाया हुआ था, जो था सोनू सूद...... लोग इसकी लंबी उम्र की मन्नतें हर दूसरी गली में मांगते मिल जाते थे।
कहां जा रही हो मैडम जी आप, पीछे से किसी वृद्ध महिला की आवाज आयी।
मम्मी ने पीछे मुड़कर देखा और धीरे से इतना ही कहा
विहार.... इससे ज्यादा कहने की उनके पास हिम्मत ही नहीं थी।
मम्मी ने इतना भी नहीं कहा कि मैं दरभंगा जा रही हूं।
मम्मी कई किलोमीटर पैदल चल चुकी थी, और अभी भी अपने लाल को घर ले जाने की शक्ति उनके पास थी, मात्र जज्बातों में, पर शरीर साथ नहीं दे रहा था।
हमारे उन्हीं मुंह बोले चाचा ने फिल्मी दुनिया के स्टार सोनू सूद को tiwtter पर एक message send कर दिया।
जिसमें लिखा था-
सर आप मुझे विहार में कहीं भी छोड़ दें, मैं चला जाऊंगा। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।
सोनू सूद ने बदले में एक message send करते हुए कहा -
"आपको ऐसे कैसे कहीं भी छोड़ दें, घर पर ही छोड़ेंगे, आप चिंता मत करें हम आप की व्यवस्था करते हैं।"
सर का इरादा पक्का था, सोनू सूद खुद 3-4 बसें लेकर आए, उन्होंने एक परिवार के सदस्य की तरह मदद की। फिल्मी दुनिया किसे हीरो कहती है, यह तो मैं नहीं जानता पर मेरे लिए वह किसी हीरो से कम नहीं है।
सोनू सूद ने बड़े प्यार से मम्मी से पूछा आप कहां जा रहे हो ?
मम्मी ने टप टप दो आंसू बहाते हुए बस इतना ही कहा दरभंगा sir....…
Ok..इतना कह, सोनू सूद बस के कुछ members से बातें करने लगे।
घर पहुंच जाओ तो भूल मत जाना...,आंटी जी खाने का डिब्बा रख लिया...... सभी ने पानी तो ले लिया ना.... सोनू जी एक watchman की तरह Round लगा रहे थे।
बस निकालने ही वाली थी, मैने अपनी छोटी सी आंखो में वो सारा दृश्य वसाना चाहा।
मम्मी के चेहरे पर आज शायद खुशी की मुस्कुराहट थी।
जिसके पास माक्स नहीं है, वो माक्स भी ले लेना.... सोनू सूद इतना कहते हुए बस से उतर गए।
और विदा कर दिया उन हजारों लोगों को जिन्हें सहारा ढूंढ़े भी नहीं मिल रहा था।
सोनू सूद बस से उतरे थे, कि तभी एक बुजुर्ग व्यक्ति ने उनके पैर पकड़ लिए और टप टप आंसू बहाते हुए कहा,
सर आप किसानों के मसीहा हैं, आप नहीं होते तो......
उस वृद्ध व्यक्ति ने इतना कहा ही था, कि सोनू सूद ने बाबा के कंधे पकड़कर खड़ा कर दिया और आंखों से आंखें मिलाते हुए बड़े ही गर्व से कहा -
किसानों के मसीहा हम क्या होंगे, किसान खुद देश का मसीहा है और उन्हीं की बदौलत ही तो हमारा देश जी रहा है। यहां तक कि हमारा पेट पल रहा है।
कुछ ही पलों में सोनू जी देखते देखते आंखों से ओझल हो गए। मम्मी की गोद में मैं बैठा हुआ खिड़की से बाहर की ओर झांक जा रहा था।
मानो आज स्वतंत्रता ही मिल गई हो, इस समय सोनू सूद ही एक ऐसे शख्स देखने में आ रहे थे। जो गरीबों के मसीहा ही नहीं, बल्कि भगवान भी कहे जा रहे थे।
उस समय भाई सोनू सूद की मम्मी भी साथ में थी, दिलीप ने हाथ से सोनू की तरफ इशारा करते हुए कहा।
सोनू जी की प्रेरणा, संस्कार या आप कुछ भी कह लो मेरी मम्मी ने मेरा नाम सोनू सूद रख दिया, इस बार सोनू सूद
ने नम आंखे किए हुए लड़खड़ाती आवाज में कहा।
तो ये थी कहानी इनके नाम के पीछे की।
दिलीप एक लम्बी सांस छोड़ते हुए खड़ा हो गया।
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मित्र मंडली के पास अब कहने को एक लब्ज़ भी नहीं था, और कोई कुछ कहता उसके पहले ही इंटरवल की घंटी बज गई।
सभी अपनी क्लास की ओर चल दिए, सोनू अभी भी बेंच पर बैठा कहीं गुम था..... खामोश था... और दुखी भी था।
कहानी यहीं खत्म होती है, पर एक बात याद रखना,
उपकार करने वाले को दुनिया दिल में जगह देती है।
🔥इंसान तो बेशक आप हो, पर इंसानियत निभाना सीखो,
कहीं ऐसा न हो आपकी बनाई हुई हवेली में किसी और का राज हो.................
उस महिला का अंतिम मैसेज -
काम बोलता है, उस काम की इज्जत होती है और बाद में उस इज्जत को नाम दिया जाता है।
धन्यवाद Sir.......
यही कारण है कि लोग प्रशासन से पहले "प्रवासी मजदूरों का मसीहा" सोनू सूद से मदद की गुहार लगाते है।
2 टिप्पणियाँ
Nice article
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