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लखनऊ टी स्टॉल - Lucknow Tea Stall |
लखनऊ टी स्टॉल - Lucknow Tea Stall, Love Story, career- 2022
लखनऊ की किस्मी टी स्टॉल पूरे क्षेत्र में अपनी पहचान छाप चुकी थी, बिना किसी पोस्टर या चिट्ठी कार्ड के बिना।
देखने में एक मशहूर प्रेमी अड्डा जान पड़ता था। जिस पर आंखें दो चार मिनट रुक कर रेस्ट लेना जरूर पसंद करती थी।
जितना मुझे पता है, यहां पहले एक ढाबा हुआ करता था। जिसको शेख साहब के अब्बू जान ने दो दर्जन रुपए देकर खरीद लिया था। और चाय की एक दुकान खोली और बस उसी कारोबार को शेख साहब बखूबी संभाल रहे थे।
जिससे उन्हें दो वक्त की रोटी और अमीर दिख सके ऐसे कपड़े भी मिल जाते थे बस इतना ही ज्यादा कुछ नहीं।
ये सब में ऐसे जानता हूं, कि मेरा कोचिंग सेंटर बचपन से ही मतलब पांचवी क्लास से अभी तक B.A. कंप्लीट होने तक यहीं रहा है। जो कि टी स्टॉल के नजदीक ही था इसलिए कोचिंग के बाद प्रथम दर्शन यहीं होता था।
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आज मैं शाम के करीब 6:00 बजे किस्मी पहुंच गया था मेरे साथ सोहित और रिमी भी थे जो मेरे क्लासमेट ही थे।
मैंने तीन कप चाय का आर्डर किया और मोबाइल के मैसेज चेक करने लगा, तो रिमी और सोहित आमने सामने बैठे एक दूसरे को चेक कर रहे थे। सोहित रिमी की आंखों में डुबकी लगाने ही वाला था, कि छोटू ने चाय साब कह कर पूरा मजा किरकिरा कर दिया। पर मुझे क्या मैंने मोबाइल से नजर हटाते हुए छोटू से धीरे से थैंक्स कहा बदले में छोटू ने भी मुस्कुराया और चला गया।
"क्या हुआ भाई बहुत परेशान लग रहे हो" मैंने चाय का कप अपनी ओर खिसकाते हुए कहा।
"कुछ नहीं यार बस ऐसे ही," सोहित ने तर्जनी से दांत के बीच फंसे धागा को निकालते हुए कहा।
"और रिमी तुम्हारा क्या हाल-चाल है? कोचिंग नहीं आ रहे हो आजकल?" मैंने रिमी की आंखों में देखते हुए कहा।
"यार पापा ने दिमाग खराब कर राखा है कहते हैं डॉक्टर बन जा पर साला कोई समझता ही नहीं है, कि हमें क्या बनना है ? बस जो है कि हम पे थोप देते हैं। कह रहे थे, बेटा हमारा सपना था, कि हम एक डॉक्टर बनेंगे। हम तो नहीं बन पाए बेटा तुम ही बन जाओ यार सुई लगाने में तो फट जाती है, डॉक्टर क्या खाक बनेंगे ?" रिमी ने घर की भड़ास लगभग निकाल ही दी थी।
यह सब सुनकर मेरे गले का थूक लगभग सुख ही गया था। मैंने चाय की एक लंबी सिप मारते हुए सूखे गले को गिला किया और बात को सहारा देते हुए कहा।
"तो मत बनो डॉक्टर। क्यों सोहित भाई सही कह रहा है कि नहीं?" मैंने सोहित की तरफ देखते हुए कहा।
"हां भाई," सोहित ने कहा।
और बस यही हमारा हाल है, तुम्हारी सुई लगाने में तो हमारी रूई लगाने में फट जाती है। पर यार मैंने तो कुछ और सोच रखा है" मैंने दोनों का अपनी और ध्यान खींचना चाहा।
"क्या ?" दोनों ने लगभग एक साथ ही पूछा।
"अब तुम्हें पसंद आये या नहीं पर मजाक मत उड़ैयो, यह बात हम पहले ही बताय रहे हैं, याद रखियो।" मैंने चेतावनी के साथ-साथ अपनी हंसी दबाते हुए कहा, मुझे डर था कहीं मजाक ना बन जाए।
"अच्छा ठीक है" रोहित ने कहा।
"Okk बेटा।" रिमी ने भी बात का मान रखने की पूरी कोशिश की।
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"हम चाय सुट्टा बार जैसा खोलने का प्लान बनाए हैं। B.A. तो बस फॉर्मेलिटी है पर चाय टी स्टॉल तो खुलना पक्का है।"
मैंने अपनी बात खत्म की ही थी कि दोनों दांत फाड़ कर मुझ पर ऐसे हंस रहे थे जैसे मैंने अभी अभी ताजा और फेमस चुटकुला ही सुनाय दिया हो।
मैंने दोनों की हंसी पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा।
"लो कर लो बात। भाई कोई काम छोटा बड़ा थोड़े ही होता है, अब हमारी इच्छा है तो बताय दिया पर यार ऐसे हंसोगे तो फिर खुल गया टी स्टॉल" मैंने बेचारगी से कहा।
क्योंकि मैं जानता था, अगर नाराज हुए तो खिचाई और हो सकती है ।
पर मुझे कहां पता था? इनके दिमाग में क्या चल रहा है।
"बिल्कुल यही हम सोचे थे भाई।" सोहित ने टेबल की पीठ थपथपाई और हंसी दबाते हुए कहा," लेकिन हंसी फिर छूट गई।
मतलब तुम हमारा प्लान सुन लिए थे। रिमी ने भी हंसी पर काबू पाते हुए कहा,"
पर मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था, कि इनका भी यही प्लान है, मैंने बात क्लियर करनी चाही।
तो क्या तुम भी?..... मैंने धीरे से बुदबुदाया।
हां यार हम भी ……...... सोहित ने टाली पीटते हुए रिमी की तरफ देखा और फिर हंस पड़ा।
"तो भाई हमें भी पार्टनर बना लो" मैंने दोनों की तरफ देखते हुए बेचारगी से कहा।
"सही है तुम भी साथ रहोगे तो टी स्टॉल बहुत उमदा चलेगा" रिमी ने बात को पुट देते हुए कहा।
"हां ठीक है इस वेकेशन में जम जाएंगे फिर अपन लोग बस पैसों की......"
पैसों की दिक्कत नहीं आएगी । मैं अपनी तरफ से पूरा सहयोग दूंगा, मैंने बात को सुने बिना ही अपनी बात रख दी।
"ओके तो फिर ठीक है, प्लान पक्का रहा?" रिमी ने मध्यमा पर अंगूठा रखे नीचे की दो अंगुली खोलें और तर्जनी को ऊपर उठाए हुए बात पर वजन देते हुए कहा।
मैंने भी हामी भर दी और घर की तरफ निकल आया और तब से कोचिंग से मेरा ऐसा नाता टूटा, कि फिर मुलाकात ही नहीं हुई। आज ये सारा किस्सा में टी स्टॉल के बाहर बैठा अपनी गर्लफ्रेंड को सुना रहा था। जिसकी एक मुस्कुराहट भी हृदय को छल्ली छल्ली कर देती थी, मैंने अपना टी स्टॉल इतना बड़ा बना दिया था, कि आज पूरे लखनऊ में बस एक ही टी स्टॉल का नाम चलता था शुक्रिया टी स्टॉल।
और आपसे बस इतना ही कहना है अगर पढ़ाई, पढ़ाई जैसी लगे। जीवन जीना सिखाए तो दुनिया क्या कहती है, यह सोचे बगैर बस पड़ते जाना चाहिए।
लेकिन अगर पढ़ाई, पढ़ाई जैसी नहीं लगे बस 1 डिग्री तक सीमित हो जाए और जिंदगी जीना ना सिखा पाए । तो जो दिल चाहता है वह करो क्योंकि जिंदगी जीना ना आए और पढ़ाई लिखाई खूब कर लो तो एक प्रकार से ये भेड़ चाल ही हुई और वो हमारे जीवन में कोई काम की नहीं है।
कुछ ऐसा काम करो जिसकी तारीफ पढ़े लिखे भी करें।
मैंने अपनी कहानी कनी को सुनाई ही थी, कि पीछे से किसी की आवाज आई।
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"ओए चल आजा नाश्ता करते हैं" ये आवाज रिमी की थी। जो आज की डेट में सोहित की वाइफ बन चुकी थी और मेरी अच्छी फ्रेंड तो थी ही।
Okk मेरी जान मैने तेज आवाज में कहा, ताकि रोज की तरह आज भी सोहित से झगड़ा हो सके और कनी का हाथ पकड़ा और लखनऊ टी स्टॉल के वार्ड पर आंखें गड़ाए हुए भीतर घुस गया।
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