मुम्बई हाईकोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णय का सार:–
"जैन हिन्दू नहीं हैं"
यह सुविदित है कि जैन हिन्दुओं से भिन्न धर्म के हैं और अपने धार्मिक विश्वासों में वे अनेक महत्वपूर्ण मामलों में हिन्दुओं से मतभेद रखते हैं। वे वेदों को प्रमाण नहीं मानते और न वे इस विचार के हैं कि कर्मकांड तथा (पशु) बलिदान का कोई धार्मिक महत्व है।
यह सच है कि जहाँ कोई रिवाज या व्यवहार (हिन्दुओं व जैनियों में) विपरीत नहीं मिलता, वहाँ अदालतों के फैसले के अनुसार जैनों पर हिन्दू कानून लागू होता है, फिर भी उनके पृथक् और स्वतंत्र समाज के अस्तित्व के बारे में जिस पर कि उनके अपने धार्मिक विचारों और विश्वासों की व्यवस्था लागू होती है, कोई विवाद नहीं किया जा सकता, इसलिए भले ही एडवोकेट जनरल के कहने के अनुसार यह संभव हो और भले ही वाँछनीय भी क्यों न हो कि जैनों को सभी कानूनी और सामाजिक मामलों में हिन्दुओं के समान ही समझा जाता है, अतः दोनों के धर्म भी एक ही समझे जायें, व्यावहारिक नहीं है। यहाँ यह स्पष्ट है कि इस कानून को स्वीकार करने का राज्य की (संविधान बनाने व लागू करने वाली) धारा सभा का उद्देश्य ऐसा करना नहीं है कि दोनों धर्म एक ही समझे जायें। इसलिए हम एडवोकेट जनरल के इस दावे को स्वीकार करने से इंकार करते हैं कि कानून का मुख्य उद्देश्य जैनों और हिन्दुओं के बीच के सारे भेद या अन्तर को मिटा देना है।
उद्धृत चारित्रचक्रवर्ती पुस्तक से (जैनधर्म हिन्दू धर्म की शाखा नहीं है, पृ.638)
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