जयपुर डायरी - Jaipur Diary |
अगर जयपुर डायरी के पहले पार्ट से दीदार नहीं हुआ हो तो अभी कर लें...😊
वाकई में गुलाबी नगर गुलाब सा महकता था और इसकी पहचान भी यहां आकर अब होने लगी थी।
जहां देखो वहां गुलाबी ही छाय पड़ी थी, बस यही कारण था, कि यहां की गलियों में पता ही नहीं लगता था, कि कहां से घुसे और कहां से निकले।
एक प्रकार से भूल भुलैया।
पर हां डोलने में बहुतई मजा आता था।
अब धीरे धीरे जयपुर रास आ रहा था या आप ऐसा भी समझ सकते हो, कि जयपुर जैसी City में आकर हम जैसे छोकरे बहुतई खुश थे।
और ऐसे ही एक छोकरे से हमारी मुलाकात हुई जो हमेशा ही Comments पास करके सभी को हंसाता रहता था।
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अब इसका मतलब जे नहीं के बंदा को इकई काम आता था, काम तो काफी आते थे, जैसे अखबार बांचते हुए अक्सर लाईब्रेरी में मिल जाना, तो कभी कभी वॉलीबॉल ग्राउंड में भाईसाहब वॉलीबॉल में हांथ बजड़ते हुए दिख जाते थे। और.....
सबसे खास बात तो जे थी, कि वो भी बुंदेलखंड का था।
"कय चले का?" मैंने अनेकांत को आवाज लगाई, जो दांत निपोरे हुए वॉलीबॉल ग्राउंड पर सर्विस की फिरात मैं खड़े थे, कि कब इनका नंबर आए और कब ये मिसमिशा के हाथ बजडे की बॉल सीधे वकील के घर में जाकर गिरे।
मन तो हमारा भी खूबई था, कि दो-दो हाथ हमहिं कर लें, पर खाना के बाद चाय पीने के बहाने वाली सैर का क्या होता?
मैंने एंट्री की और निकल गए और सीधे KT पहुंचे जहां चाय पीने के दीवाने अक्सर आते जाते रहते थे।
यहां आकर बड़ा हल्का फील हो रहा था, मानो जन्नत में मैं ही आ गए हो, मैं पहली दफे जब चाय लेकर बैठा ही था, कि एक सीनियर नजर आ गए ।
पहले पहल तो बड़ी शर्मिंदगी महसूस हुई, सच कहूं तो चाय का प्याला वहीं छोड़कर पतली गली निकल लिए।
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उसकी तो छोड़ो हमें ऐसा फील हो रहा था जैसे किसी ने हाथ तक आया अमृत छीन लिया पर धीरे-धीरे साथ बैठकर चुस्कियां लेने की हिम्मत आ गई थी।
यह सब तो चल ही रहा था, लेकिन अभी भी कॉलेज के दर्शन नहीं हुए थे, कि कॉलेज कैसा है? कैसा नहीं ? पर फोटो में खूबई चमक रहा था, पर हकीकत कुछ और थी।
मैं सुबह का खाना खाकर बस में बैठ गया। जो सीधे महाविद्यालय के बगल में जाकर रुकी।
उतरते ही नाले से शुरुआत हुई इसकी गंध नासिका की श्वास नली के मार्ग से धीरे-धीरे उतरते हुए फेफड़ों तक संदेश दे गई थी, कि भैया नाक पर रूमाल रख लो, नहीं तो चकराए के यहीं गिर पड़ोगे।
मैंने तुरंत ही रूमाल निकाला और नाक पर रख लिया, नाले ने हमारे स्वागत में कसर नहीं छोड़ी थी, बस इसी खातिर इसका जिक्र करना जरूरी समझा।
मैं अपनी क्लास में जाकर बैठ गया कुछ ही पलों में जैन दर्शन के अध्यापक जितेंद्र सर की जोरदार एंट्री हुई।
जय जिनेंद्र सर......ये शब्द लंबा खींचते हुए हम सभी ने अपनी अपनी जगह पर खड़े होकर सम्मान जताए दिया।
सर ने सभी को बैठने का संकेत किया और वही किया जो इतिहास दुहराता आया है।
सभी का बायोडाटा आदान प्रदान शुरू हो गया, जिनमें से मुझे कुछ टैलेंटेड नजर आए, तो कुछ नमूने भी लगे, लेकिन बाद में सब दोस्त बन गए।
ये सारा कार्यक्रम हिंदी भाषा में था या कहें सभी हिंदी में ही बतयाय रहे थे, जिसमें हमें मजा भी आ रहा था और Feeling भी अच्छा हो रहा था।
अब अंग्रेजी का पीरियड लगने वाला था, जिसकी वर्णमाला के अलावा हमें कुछ भी पसंद नहीं था या कहूं अंग्रेजी से हमें सख्त नफरत थी। वो इसलिए कि हमें नहीं आती थी, नहीं तो हमने अंग्रेजी बड़बड़ाने वाले को हमेशा ही उच्च लेवल का दर्जा दिया है।
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"ना जाने कौन अंग्रेजी में ही चार गाली सुना दें, और हम दांत निपोरते हुए उनका मुंह ताकते रहे।"
खैर छोड़ो ये तो हमारा मन का निचोड़ था। आप क्या करोगे?
मैम क्लास में आ चुकी थी।
"यार तुम्हें इंग्लिश आती है?" मैंने अपने नाम धारी अभिषेक भोपाल से पूछा, जो बगल में ही बैठा था।
"हां....... थोड़ी-थोडी अभिषेक ने कहा।
मुझे लगा अच्छा है, अपनी लेवल का बंदा मिल गया। हम दोनों बातों का सिलसिला आगे बढ़ाने ही वाले थे, कि मैडम जी ने कुछ अंग्रेजी में बड़बड़ाया।
मैं चुपचाप शांति से बैठ गया, अपने को मैम से बचाता हुआ कहीं मैम हम से कुछ पूछ पांछ ना ले ।
"वैसे ये क्या कह रहीं है भाई " मैंने बगल वाले पड़ोसी से पूछा ।
शाश्वत ने चश्मा चढ़ाते हुए कहा, "कुछ नहीं भाई अपना अपना परिचय बगैरह बताने को रैडी रहना यही कह रही हैं"।
मैंने शाश्वत को आंखे चौड़ते हुए देखा। यार बंदा तो अंग्रेजी में होशियार है।
ठीक है भाई.. मैंने धीरे से कहा।
सिलसिला शुरू हो चुका था, कोई कह रहा था।
My name is............ तो कोई कह रहा था, I am........ मैंने इसमें से I am... वाला फॉर्मेट अपनाया। और from लगाकर गांव का नाम और परसेंटेज।
अब धीरे-धीरे नंबर हमारी तरफ ही बढ़ रहा था, लेकिन दिक्कत कहां थी? स्पीच जैसे लाइन जो रट ली थी।
आखिरकार संकेत हमारी बैंच की ओर आया।
मैं खड़ा होकर स्टार्ट हो गया। और एक ही सांस में सब बोल गया।
I am Abhishek kumar Jain.....
परसेंटेज....…..अब परसेंटेज नहीं बताई इसका मतलब जे नहीं के कम नहीं थी, भाई 80 बनी थी।
From... देवराहा
What.... मैम जी ने मुंह गुड़याते हुए कहा।
दे..व..रा..हा मैंने एक एक अक्षर चलाते हुए कहा। अब नाम ही ऐसा था, जिसे सुनने के बाद सामने वाला एक बार तो पूछता ही था क्या?
और मैं भी बड़ी सादगी से लंबा खींचते हुए देवराहा बता देता था। जई से हमारे दोस्त हमे देवरा जी कह के बुलाते हैं।
Good... मैम ने बैठने का इसारा किया।
मैं चुपचाप बैठ गया, कहीं इससे ज्यादा कुछ और ना पूछ ले नहीं तो खामखां इज्जत का फालूदा हो जाता, कुल मिलाकर पूरा दिन परिचय में ही बीत गया।
भरी दोपहर को वहां से रवाना हुआ और फिर अपनी हवेली पर जा पहुंचा, जिसके बाद फिर एक नयी दुनिया मिल गई और एक मिल गया एक जीने का तरीका......
ये सब तो चल ही रहा था, लेकिन अंग्रेजी बहुतई सिर घुमाए रही थी।
पर एक दोस्त ने कहा....
English कहां बुरी चीज है, जिसे झप गई तो बढ़िया, ना झपी तो ये कहना "अंग्रेज मर गये, अंग्रेजी छोड़ गये"
खैर और भी कई किस्से बांकी है।
वैसे हम कहां जाय रहे हैं। मिलते हैं अगली किस्त में जयपुर डायरी पार्ट 3 में....
वो भी एक नये नदाज में अभी के लिए इतना ही...
2 टिप्पणियाँ
Bhai majja aa gaya purani yade takia kr di tune
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है लेखन जारी रखो ।
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