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गुजरे वापिस नहीं आते...? 2022, जीवन में कभी भी ऐसा काम नहीं करना

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गुजरे वापिस नहीं आते...?

गुजरे बापिस नहीं आते...? कभी-कभी हमारे जीवन की कुछ यादें ऐसी होती है, जिन्हें ना तो भुला पाते हैं, ना ही उन जैसी यादें बना पाते हैं। दुनिया का एक Rule है, कि अगर जीना है तो जीने के बारे में सोचते रहो, अगर जिस दिन भी जीने की इच्छा मर जाएगी उस दिन तुम चलते-फिरते भी मुर्दा घोषित हो जाओगे दुनिया में नहीं, सिर्फ वह सिर्फ खुद में ही।

इस Rule को रबीना ने आज ही सीखा था और सिखाने वाला सोहिल भी शायद आज ही सही से इसे समझ पाया था। पर वह आज सोहिल को आज भी आज जैसा लगता है।

सोहिल की मार्ट में शॉप है, जिस पर अक्सर भीड़ देखने को मिल जाएगी और ये भीड़ सोहिल के लिए सुबह से लेकर शाम तक उसी जोश के साथ नजर आती है।

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जैसे फ्री में डाटा मिलने पर हर शख्स के मुंह पर खुशी की लहर होती है।

    सोहेल अभी-अभी फ्री होकर मार्ट से निकला ही था, कि सोहिल की पेंट की जेब में पड़ा मोबाइल टुनटुनाने लगा। सोहिल ने मोबाइल सीधे कान पर लगाया और बाइक स्टार्ट करके रफ्तार पकड़ी थी, कि सामने से किसी ने जोर से थप्पड़ मारा। ये थप्पड़ दरअसल मोबाइल से आती किसी की आवाज ने मारा था।

सोहिल ने जैसे सुना वो वहीं रुक गया।

"क्या भाई! भूल ही गए हो क्या ?" सोहिल ने बदले में कहा।

"नहीं बेटा, लगता है तुमने जरूर भुला दिया है।" सामने से किसी ने ऐसे बोला जैसे गुटका दबाए हुए कह रहा हो।

"नहीं यार, वो आजकल मार्ट में शॉप खोली है ना। बस उसी में फंस गए हैं और बता क्या हाल-चाल है? सोहिल ने खुशी जताते हुए कहा।

"सब ठीक-ठाक है। तू तो सेटल हो गया है और हमारी लंका यहां लगी पड़ी है। और बेटा रबीना से बात होती है?" कबीर ने पूछा।

सोहिल ने लगभग अब चुप्पी साध ली थी, देखकर तो लग रहा था, जैसे कबीर ने दुखती नस पर हाथ रख दिया है। सोहिल ने जब कुछ नहीं कहा तो इसका इशारा कबीर समझ चुका था। कबीर ने बात में मिठास घोलनी चाही।

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अबे साले, नई बंदी मिल गई है क्या है? हैं……. हैं…… अच्छा शर्म आ रहा है, मत बता पर मैं परसो आ रहा हूं। फिर देखता हूं, अभी मैं काम पर हूं, फिर बात करता हूं। 

कबीर ने बात को यहीं खत्म कर देना उचित समझा वह नहीं चाहता था दवे घाओं को फिर से उकेरा जाए ।

कबीर, सोहिल के पड़ोस में ही रहता है, जो कि आजकल अहमदाबाद में लगा पड़ा है और सोहिल पास के मार्ट में शॉप पर दिन खर्चा कर देता है।

लेकिन रबीना सोहिल की जो सबसे करीबी थी उसका आज कुछ अता पता भी नहीं है। और शायद इसी गम को मिटाने की नाकाम कोशिश सोहिल हर रोज करता था।

लेकिन गम मिटने की बजाय बढ़ता ही जा रहा था। कल किसी ने तो आज किसी ने उस घाव को उकेरा ही है, कुछ ने तो जानबूझकर, तो कुछ ने अनजाने में पर दर्द हर बार एकसा ही हुआ।

सोहिल थका हारा घर जाकर सीधा सो गया और रात के करीब 9:00 बजे उठा, सामने मां बैठी थी, जो किसी सोच में डूबी हुई, खुली आंखों से सो रही थी। सोहिल ने कुछ नहीं कहा।

मुंह, हाथ धोए और समुंदर किनारे चला गया जहां हर रोज सोहिल जाया करता था। सोहेल रात के 12:00 बजे तक बैठा रहा, और फिर आकर सो गया ऐसे 2 दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला।

कबीर भी अहमदाबाद से आ गया था, सोहिल जब घर पर नहीं मिला तो कभी सीधे वही पहुंचा, जहां हर रोज सोहिल रात की चांदनी ताकत था।

कबीर बगल में जाकर बैठ गया, सोहिल अभी भी बेसुध हाथ में बीयर की बोतल लिए हर घूंट के साथ रबीना को याद कर रहा था। पर एक बार भी बगल में नजरें नहीं फेंकी, फिर क्या कबीर ने ही कंधे पर हाथ रखते हुए कहा

"अबे तू तो नशेड़ी भी हो गया है? और दारू कब से पीने लगा है?" कबीर ने लगभग झल्लाते हुए कहा।

"तू...., तू कब आया?" सोहिल ने आंखों की त्रिज्या चौड़ाते हुए कहा।

"जब तूने दूसरी बोतल खोली थी।" कबीर ने खाली पड़ी हवा के साथ खेलती उस धड़कती बोतल की तरह देखते हुए कहा।

"छोड़ ना। और बता कैसा है तू?" सोहिल ने दाएं कंधे पर हाथ रखकर ऐसे पूछा जैसे सोहिल इनका बाप ही बन गया हो।

"ठीक हूं। पर तुम ठीक नहीं हो! चल घर चलते हैं। कबीर ने हाथ की बीयर फैंकी और बाइक पर बिठाया और घर की तरफ निकल आया।

"मम्मी को पता है? रबीना के बारे में?" कबीर ने बाइक पर बैठे पीछे देखते हुए कहा।

"उनकी तो बहू बनने वाली थी, पता क्यों नहीं होगा? कैसी बातें करता है। सोहिल ने पीठ थपथपाई।

"और पापा?"

"उनका तो पूछ कर बताना" सोहेल ने मरी सी मुस्कुराहट के साथ एक लंबी सांस ली।

"ओके दादा अभी चलो ।" कबीर ने तेजी से घर की तरफ गाड़ी घुमाई और सीधे सोहिल के घर के सामने रुकी और सोहिल को घर पर छोड़ा और खुद भी घर चला गया।

आखिर बात क्या है? किस वजह से सोहिल इतना दुखी है? कबीर के दिल में कई सारे प्रश्न उठ उठ कर दफन हो रहे थे।

      कबीर अगले दिन कॉलेज गया, जिससे कुछ जानकारी मिल सके पर कॉलेज से पता चला, कि रबीना तो पिछली साल एक्सीडेंट में ही मारी गई।

कबीर हतप्रभ हो गया था, उसे अपने आप पर गिल्टी फील हो रहा था। अनजाने में उसने कैसा प्रश्न पूछ लिया था ? उसे अब उसका एहसास हो रहा था। पर कबीर ने साहस नहीं खोया।

      सीधा मार्ट की ओर निकल आया, सोहिल से जब मिला तो फूट फूट कर रोया जैसे कि रबीना से ही प्यार करता था।

"क्या हुआ बे, अम्मा गुजर गई क्या ?" सोहिल ने मजाक करते हुए कहा।

कबीर अब भी आंसू बहा रहा था सोहिल ने फिर पूछा। "क्या हुआ भाई कुछ प्रॉब्लम है क्या?" सोहेल ने पीठ सहलाई।

"नहीं भाई, रबीना गुजर गई," यह सुनकर सोहिल की भी आंखें भर आई, पर ढाढस बंधाते हुए सोहिल ने कड़क आवाज में कहा।

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"तो क्या हुआ ? तेरी कौन लगती थी? सोहिल ने तर्जनी से आंसू को एक पल में रफा-दफा कर दिया। जिससे कबीर को ये एहसास भी ना हो पाए कि सोहिल आज भी दुखी है।

कबीर ने सिर हिला कर जता दिया, कोई नहीं।

तो क्यों रो रहा है ? गुजरे वापस नहीं आते। इस बार सोहिल का भी गला भर आया था।

"तो वही तो मैं कह रहा हूं, गुजरे वापस नहीं आते। तो तू क्यों आज भी उसी के इंतजार में अपने आप को बर्बाद कर रहा है।" कबीर ने लगभग चिल्लाते हुए कहा।

जिसे सुनकर सोहिल कुछ समय के लिए बर्फ सा स्तब्ध हो गया, शायद जिस जवाब की प्रतीक्षा सोहिल को थी, वह आज मिल गया था।

"Sorry भाई मैं अब सब समझ गया हूं, आइंदा कभी भी दुखी नहीं रहूंगा। सोहिल ने आंसू बहाते हुए कबीर को सीने से चिपका लिया। कबीर को भी यह सुनकर बहुत अच्छा फीलिंग हो रहा था।

कुछ दिनों में सब नॉर्मल हो गया, कबीर फिर अहमदाबाद चला गया। और सोहिल भी अच्छी तरह से जिंदगी जीने लगा पहले की तरह जिंदगी काट नहीं रहा था, फिलहाल जी रहा था।

आज फिर दुकान बंद करके सोहिल निकला ही था और बाइक स्टार्ट कर के रफ्तार पकड़ी थी, कि जेब में पड़ा मोबाइल आज फिर टुनटुनाने लगा।

सोहिल ने मोबाइल को कान पर सटा लिया।

सामने से कबीर की आवाज थी।

"क्या हुआ नई सेटिंग हुई के नहीं?"

हो गई गुरु। सोहिल ने बाइक की रफ्तार और बढ़ा दी शायद अब दिल से वो जा चुकी थी। सोहिल अब नई जिंदगी जी रहा था। शायद ऐसी जिंदगी जो पहले से अच्छी थी।

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गुजरे वापिस नहीं आते..?

सवाल एक हो सकता है, पर जबाब कई सारे हैं, जो फिट बैठ जाए वह बैठा दो और जब तक खुद को कंफर्ट ना मिल जाए तब तक लगे रहो और जब कंफर्ट मिलेगा समझ लेना यही सही जवाब है।

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